इस दुनिया की वैसी तस्वीर पेश करते है जो आपके मन माफिक नहीं है. पर अनजान नहीं है....अपने मन की दुनिया तो गर मिलती है तो बस कुछ लम्हों के लिए उल्टा खड़ा करके रखी गयी रेत घडी के परपोश्नल......
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जवाब तुम्हारे जवाब का मुन्तजिर मैं बैठा रहा पर जवाब गणित के सवाल का तो नही था जो आ ही जाता, मैं बैठा रहा फिर भी रेत घडी को बार बार उल्टा-सीधा करते हुए करता रहा इंतज़ार पर तुम्हारा जवाब पीपल के पत्ते की नोक पर अटकी बूँद नहीं था जो गिर ही आता हथेली पर..